ढेरों कहानियाँ, उपन्यास और कॉमिक्स जीवन इन्हीं उमंगों पर हिलोरें मारता चलता बढ़ता रहता। हिन्दी भाषा अपनी भाषा यानी अपनी हिन्दी लगती थी।
उन दिनों हिन्दी का बड़ा बोलबाला था। हम बच्चे, कालोनी में छः या सात, सब एक ही कक्षा के सहपाठी और परस्पर दोस्त हुआ करते थे। स्कूल के बाद दिनभर खेलकूद, फ़िल्मों और उनके डायलॉग्स पर चर्चायें, क्रिकेट की बातें और ढेरों कहानियाँ, उपन्यास और कॉमिक्स; जीवन इन्ही उमंगों पर हिलोरें मारता चलता बढ़ता रहता।
ज़िंदगी की कोडिंग
जी हाँ, ये ८० – ९० के दशक का वह समय था जब हम पारंपरिक खेलों को खेलकर (जिसे अब हम सब भूल गये है) और पेड़ों पर चढ़कर, ज़िंदगी की कोडिंग सीख रहे थे, और साथ ही साथ हिन्दी पर पकड़ भी पक्की कर रहे थे, बस यूँ ही, अनजाने में।
हिंदी तब आजकल के बच्चों की तरह विशेषतः सीखनी और याद नहीं करनी पड़ती थी। वो बस माँ के आँचल की तरह हमसे लाड़ से लिपटी हुई सी रहती, और हम हिंदी के साथ साथ बढ़ते चले गए।
कहना होगा कि हमने हिंदी को कभी गम्भीरता से नहीं लिया था, क्योंकि हिंदी सहजता से समाज में स्वीकार्य थी और सरलता से उपलब्ध भी थी।
आजकल अपने ही बच्चों को हिन्दी से अनभिज्ञता और दूरी देख कर मन में चुभन सी होती है क्योंकि हिंदी से विमुख होना अपनी संस्कृति से भी विमुख करता है। सांस्कृतिक समृद्धि और पारंपरिक मूल्यों का स्पर्श न हो तो व्यक्तित्व पहचान विहीन हो चलता है।
तो अपनी नई पीढ़ी को हिंदी की सहज छाया में रखना ही श्रेयस्कर है क्योंकि पौधे की रंगत उसकी अपनी मूल देशज मिट्टी में ही निखरती है।
बोलचाल की व्यावहारिक हिंदी की अपेक्षा, पठन-पाठन वाली हिंदी शिष्ट होने के साथ क्लिष्ट भी प्रतीत होती है। फिर भी हमारी बाल्यावस्था में हिंदी सीखना व पढ़ना कभी भी कठिन और बोझिल प्रतीत न हुआ।
पत्रिकाएँ, कहानियाँ, समाचार पत्र, उपन्यास और कॉमिक्स के उस दौर ने अपनी भूमिका बख़ूबी निभाई। एक बार अँग्रेजी पढ़ाने वाली एक प्रध्यापिका महोदया ने कक्षा में एक विचार व्यक्त किया था कि “Read read and read literature if you want to learn English”. तो यह कथन हिंदी पर भी उतना ही लागू होता है। घर की अलमारियाँ यदि हिंदी साहित्य से सजी हों तो बच्चों में हिंदी स्वतः रच बस जाएगी।
अपनी हिंदी खो गयी टेलीविज़न, लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन मे
तो विचारणीय यह है कि हिंदी किताबों से भरी अलमारियाँ कहाँ गईं और बच्चों की साथी कहानियों की किताबें, बाल-पत्रिकाएँ, कॉमिक्स और बाल-उपन्यासों की श्रृंखलाओं का क्या हुआ? एक तो यह हुआ कि टेलीविज़न ने कुछ समय छीना, फिर रही सही कसर मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप ने पूरी कर दी।
कब हम घर ही में हिन्दी के विरोध पर उतर आए हम स्वयं ही नहीं जान पाए
लेकिन इससे भी ज़्यादा हानि हमारे मन और समाज मे व्याप्त हिंदी के प्रति इस कुंठा ने पहुँचाई कि यदि आगे बढ़ना है, प्रगतिशील और सभ्य दिखना है तो अंग्रेजी सीखो। अँग्रेजी रोज़गारपरक तो थी ही, ऊपर से पढ़ेलिखे को अँग्रेजी में गिटपिट करना नितांत आवश्यक समझ लिया गया।
चलो अँग्रेजी समझना और बोलना तक तो ठीक, कब हम घर ही में हिंदी के विरोध पर उतर आए हम स्वयं ही नहीं जान पाए। बेटे जूता नहीं Shoes कहो! कड़ाही नहीं, Pan कहो! अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुल गए, “उठो लाल अब आँखे खोलो” से आँखें फेर, अँग्रेजी में “Twinkle twinkle याद करवाए गए। हिंदी किताबें, पुस्तकालयों में भी पिछली कतारों में धूल फाँकने लगीं।
सारा दोष TV और मोबाइल फ़ोन का नहीं, हमारी सोच का भी रहा है। जब हमारी नवजवान पीढ़ी हिंदी से अनजान होगी, उससे कन्नी काटेगी तो हिंदी भी मर जाएगी और उसके साथ मरेगी हमारी सभ्यता और सांस्कृतिक धरोहर भी।
उपेक्षा की शिकार हिन्दी संग्रहालयों में जा छिपे
हिन्दी की जगह हमारे घर, विद्यालय और पुस्तकालय हैं, कहीं ऐसा न हो कि उपेक्षा की शिकार हिंदी संग्रहालयों में जा छिपे।
“हिन्दी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।” – स्वामी दयानंद सरस्वती
तो चलिए, शुरुआत करते हैं अपने घरों से। अच्छे हिन्दी साहित्य, किताबें, कहानियों से घर की अलमारियाँ सजाते हैं। पढ़ी-अनपढी किताबों को घर में पुनः उनकी पुरानी जगह लौटाते हैं। किताबों का परस्पर आदान-प्रदान, मित्रों और सम्बन्धियों को उपहारस्वरूप पुस्तकें देने का सिलसिला फिर आरंभ करते हैं। थोड़ा वक्त लगेगा, नई पीढ़ी को माटी की सुगंध तो लेने दीजिए, हिंदी फिर खिल उठेगी।
हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!
(हिन्दी भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है और इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। हिंदी के महत्व को बताने और इसके प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर १९ ५३ से प्रतिवर्ष १४ सितंबर को भारत में हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। जबकि सन २००६ से १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।)
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छवि स्रोत (image source) : canva & unsplash
आपने बहुत अच्छा प्रस्तुत किया
आपके हिंदी लेख ही उतने ही अच्छे होते हैं जितने अंग्रेज़ी के। हिंदी भाषा का प्रभाव आजकल काम होता प्रतीत हो रहा है। आपने सही कहा – “हमने हिंदी को कभी गम्भीरता से नहीं लिया था, क्योंकि हिंदी सहजता से समाज में स्वीकार्य थी और सरलता से उपलब्ध भी थी।” आज भी हम हिंदी में पहले सोचते हैं फिर अंग्रेज़ी में। शायद यही सहजता है इस भाषा की। आने वाली पीढ़ी इसको संजो कर रखने में कहाँ तक सफल हो पाएगी यह कहना कठिन है।
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है और आज की भगति ज़िन्दगी में हमने उसको हो पीछे छोड़ दिया है, इस बात के लिए दूसरो को गलत ठहरना गलत होगा क्यूंकि हम भी इस के लिए पूर्ण रूप से ज़िम्मेदार है।
I agree with your thoughts completely. staying in USA for more than 5 years, I always missed Hindi conversation and also feel sad that my girls are not getting enough opportunity to learn their different beautiful aspect of their mother tongue. hope things change in future and our mother tongue get equal importance like other global language.
This is so true. Once I remember my daughter’s teacher said speak in English at home as that will improve her English speaking skills. And that day I consciously made it a point to speak in English but I am glad my husband said let one of us converse in English and I will speak in Hindi. But as I spend more time with kids now they are better in English and almost struggle to converse in Hindi. This is an irony… But now I make an extra effort to have conversation only in Hindi.
My mother tongue is kannada as I am from karnataka but no matter where you stay in India, hindi is a easy to go language and I know hindi since childhood… And now my daughter also is learning hindi little little.
बहोत दिनों बाद हिंदी में कोई ब्लॉग पढ़ा है और सच कहूं तो बुरा लग रहा है की हम अपनी राष्ट्र भाषा से इतनी दूर कैसे हो गए। मैं अपने बच्चों को हिंदी पुस्तक पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हूं ताकि वे इसे समझ सके।
I am sure you wrote your heart out. But coudnt read hindi well. would love to have a translated one.
I have learnt Hindi as a 3rd language in school, just for 2 years. However, I simply loved how easily it can be picked up and so I started reading Hindi books, even afterwards. It is a very beautiful language and anyone can learn it easily.
Hindi is a beautiful and flowery language. We love Hindi and speak the language at home too, even though it is not our mother tongue.
First of all, हिंदी दिवस पर आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं! I loved this post about the importance of Hindi in our lives. I think there should be a campaign on #apnihindi to bring the focus back on our national language.
I love Hindi language, It is beautiful and has so many amazing words. Even though Hindi was not my main language, I still always loved reading and writing in Hindi.
Couldn’t agree more, we Indians have a problem accepting our roots and end up mixing up life with an unwarranted dilemma. I too have done that – prioritizing English over Hindi with my kid, but now I realize how wrong I was.
I love Hindi language, Because of modernisation we have stopped accepting it . It is beautiful and has so many amazing words.
I am proud to say that Hindi is my mother tongue. And I completely agree with you back in 80-90’s hindi was never a subject it was like a family member whom we just accepted gracefully. Now a days hindi is looked upon as a task that kids have to complete or achieve some how. In the era of hinglish hindi has lost its flavour. But I still like to keep hindi alive in my house with the hindi literature books that I often love to get hold of and read sukun see.
वास्तविकता को उजागर करता अच्छा लेख है
आपने बहुत अच्छा प्रस्तुत किया
सुन्दर प्रस्तुति, हमारी मातृभाषा पर